Haryanvi Lok Geet – हरियाणवी लोक गीत
हरियाणवी लोकगीतों की मधुर धुन और भावपूर्ण बोल, मेरे दिल को छू जाते हैं। ये गाने विशेष रूप से मेरे दिल के करीब हैं, क्योंकि इनमें हमारे विरह, प्यार, और संवाद का अनूठा प्रतिबिम्ब है। मैंने इन गीतों को सुनकर हरियाणा की धरोहर को अपने अंतरंग मन से जुड़ा हुआ महसूस किया है।
विवाह संबंधी लोकगीत ने मेरे दिल को वहां के रंग-बिरंगे त्योहारों में खील उठाया है। कन्या-पक्ष और वर-पक्ष के मधुर संवाद में, आँखों में खुशियों की झलक छा जाती है। इन गीतों में समाज के नैतिक मूल्यों का प्रशंसापूर्ण प्रतिबिम्ब मिलता है और विवाह के पवित्रता और समरसता की मिसाल मिलती है।
भक्ति संबंधी लोकगीतों ने मेरे मन को धार्मिक भाव से जोड़ दिया है। देवी-देवताओं के गुणगान और उनकी महिमा को गाने से मन को शांति और प्रसन्नता का एहसास होता है। इन गानों में दिव्यता और प्रेम का संदेश मिलता है और मनुष्य की आत्मा को प्रेरित करता है।
सावन और फागण के गीतों की मधुर धुन और बारिश के मौसम में खुशियों का अनुभव कराते हैं। ये गाने हमें रंगों की बहार और प्रकृति की सुंदरता से रूबरू कराते हैं। विविधता और एकता का संदेश देने वाले इन गानों ने मेरे मन को नई उड़ान भर दी है।
हरियाणा की भूली-बिसरी धरोहरों को जीवंत करने वाले इन लोकगीतों के माध्यम से, मैं अपनी पूर्वजों के साथ जुड़ते हुए उनके समृद्ध संस्कृति को आत्मसात करता हूं। हरियाणवी लोकगीतों में छुपी उन्नति, समरसता और भावनाओं को समझकर मेरे दिल में एक अद्भुत गर्व और आनंद का अनुभव होता है।
इन लोकगीतों के सुर मेरे दिल को छू जाते हैं और उनके बोल मेरे मन को बहुत खुशी देते हैं। हरियाणवी लोकगीतों में छिपी रहस्यमयी खूबसूरती और एकता के संदेश को समझकर, मैं अपनी प्रिय भूमि हरियाणा को श्रेष्ठ मानता हूं और गर्व से कहता हूं, “हरियाणा हूं मैं, मुझे गीतों में बसाया है दिल, और लहू में बसी है मेरी संस्कृति।”
विवाह संबंधी लोकगीतों की मधुर धुन और उनके बोल मेरे दिल को छू जाते हैं। विवाह के पवित्र समय में, कन्या-पक्ष और वर-पक्ष के गाने एक-दूसरे के प्रति अपार प्रेम और समर्थन का संदेश देते हैं। ये गीत न केवल संबंधों की एकता का प्रतीक हैं, बल्कि उनमें सामाजिक संस्कारों की प्रशंसा भी होती है। हरियाणवी विवाह संबंधी गीतों में आधुनिकता की चाहत और परंपरागत भारतीय संस्कृति का अद्भुत संगम होता है।
मैं हरियाणवी विवाह संबंधी गानों के सुर में खो जाता हूं। ये गाने मेरे मन को सुकून और आनंद से भर देते हैं। इन गीतों के बोल में समाज के मूल्यों की प्रशंसा होती है और विवाह के महत्वपूर्ण समय को समर्थन करती हैं। विवाह की रस्मों और रीति-रिवाजों के माध्यम से, ये गीत एक परिवारिक माहौल का संवाद करते हैं, जिसमें प्रेम और आदर की भावना समाहित होती है।
भक्ति संबंधी हरियाणवी लोकगीत ने मेरे मन को भगवान के प्रति श्रद्धा और भक्ति से जोड़ दिया है। इन गानों में दिव्यता और आध्यात्मिकता की महिमा गायी जाती है, जो मन को शांति और आनंद से भर देती है। ये गीत मेरे मन को प्रकृति और उसके रहस्यमयी रंगों से भर देते हैं और मुझे एक अलौकिक अनुभव का सामना कराते हैं।
सावन और फागण के गीतों के सुर मेरे दिल को भाते हैं और उनकी धुन में खोने का मजा ही कुछ और है। बरसात के मौसम में ये गाने आकर्षकता और रोमांचक भावनाओं को उत्पन्न करते हैं। हरियाणवी फागण के गीत खिल्ते हुए गुलाबों की तरह खिलखिलाते हैं और मन में रंग-बिरंगी खुशियों का उत्साह भर देते हैं।
हरियाणवी लोकगीतों में समाज की भूली-बिसरी धरोहरों को संजीवनी देने का काम होता है। इन गानों के बोल में समाज के मूल्यों, संस्कृति, और परंपरा की महिमा गुणगान होती है। हरियाणवी लोकगीतों के माध्यम से, मैं अपने भूमि के समृद्ध संस्कृति और विरासत को अपनाकर अपने मन को समृद्ध और संतुष्ट महसूस करता हू
जन्म के समय गाए जाने वाले हरियाणवी लोकगीत (Haryanvi Lok Geet)
जच्चा की चटोरी जीभ जलेबी मंगवा द्यो नां
किधर तै आई दाई किधर ते आया नाई
जच्चा तै म्हारी याणी भोली जी
जच्चा तो मेरी भोली भाली री
अजी केले से आवै हमें बांस
पीला तै ओढ म्हारी जच्चा पाणी नै चाली जी
इस इमली के ओड़े चोड़े पात
हासी सहर से पाते मंगवा दो
कहियो सुसरा जी से मेरा दिल खट्टे बेरां नै
कित रै घडिये कढाईयां
के दुःख री तन्नै सास का, के तेरे पिया परदेस
कोई मांगी कढ़ाई ना देय मेरा दिल हलुवै नै
कोड्डी कोड्डी बगड़ बुहारूँ / हरियाणवी
चंदन रुख कटाय कै
चलो म्हारा राजीड़ा जी सहरां मैं चाली
चुप चुप खड़े हो जरूर कोई बात है
छम छम छनन अटरिआ चढ़गी गोदी में
जच्चा ने बच्चा जाया है, दिन खुसी का आया है
जच्चा हाय मैया हाय दैय्या करती फिरै
जन्में हैं राम अजुध्या मैं
जिद्दिन लाडो तेरा जनम हुआ
जी पहला मास जै लागिया, दूध दही मन जाय
जै री माता तू सतजुग की कहिए राणी
तेरा दादा घढ़ावै अटल पलना
दरद हमने सहे ये सैयां के लाल कैसे कहाये
दिल्ली सहर से पति खद्दर मंगा द्यों जी
दूर दिसावर सै आई नणंदिया, भाई भतीजे के चाव
नणन्द भावज का था प्यार दोनों रल कातती
पड़दा ओल्है जच्चा बोलै राजन उरै बुलाओ जी
बड़ए बगड़तै सती राणी नीसरी भर गोबर की हेल
मन खोल के मांगो नन्दी लेना हो सो लेय
मन्नै भावें कराले के बेर रुपये सेर, मेरा री मन बेरां नै
मांगो मांगो म्हारी नणन्द थारा मांगण का ब्योहार
मेरा पिरस चढन्ता सुसरा न्यू कवै
मेरा भंवर ने भेजी निसानी एक ताला एक छुरी।
मैं आई थी मीठियां की लालच
मैं तो थारा हाजिर बन्दा जी, हमारी धन रूस क्यों गई
मैं तो रूस रहूंगी बालम हरगिज बोलूं ना
रसीणे के कमरे में जच्चा हमारी री
रहो रहो बांझड़ली दूर रहियो
राजा जी जे थारै जन्मैगा पूत
राजे गंगा किनारे एक तिरिया सू ठाड़ी अरज करे
वृन्दावन से चलिये गवन्त्री
ससुर जी आगे सात प्रणाम
सासू म्हारी आवै
सिया खड़ी पछताय कुस बन में हुए
सुसरै जी से अरज करूं थी
हम धनी जी खिचड़ी की साध
हां जी बमण बैठो अंगणा धी रै जमूंगी बमणा
हे री खत भेज रही पीहर मैं
हैं घूंघर वाले बाल मेरे ललना के
होलर कहै री अम्मा! तुझे झुंझणा मंगा दे
पलंग पर खेल रहो मेरो नन्दलाल
पांच मोहर का साहबा ! पीला मंगाद्यो जी
पायां में पैजणियां लाला छुन्नक डोलेगा
शादी-ब्याह के हरियाणवी लोकगीत (Haryanvi Lok Geet)
पाँच पतासे पान्या का बिड़ला
बीरा भात भरण ने आया री
हमने बुलाये सुथरे सुथरे भूंडे भूंडे आये री
पटरी ये पटरी मुस्सी जा , बंदड़े की बेबे रूसी जा
गार गडी भई गार गडी, सासू छोटी बहु बड़ी
क्याहै की तेरी चिलम तमाखू
बाबा देस जांदा परदेस जाइयो
ऊंची हे दोघड़, नीचा ए बारणा
मेरा सुसरा बरजै हे बहू!
कद की देखूं थी बाट माई
किसिआं बान्ना हे न्योंदिए
ऊंची तेरी खाई ऊंचा नीचा कोट
काहे को तेरी ओबरी
रावटड़ी चढ़ सूत्या बाई का बाबा जी
किस नींद सूत्या मेरा लक्खी ओ दादा
हे कपड़े तों क्यूं ना धुआए मेरा ए बाबा
किस रुत बाड़ी बोईएगी
कचनार बैठी लाडो पान चाब
मेरे दादा जी चितर एक जस ल्यो
मेरी बीबी सोवै अटरिया
अमर बेल उदय पै छाई
लाडो सोई सोई उठि जांगियां
हरे हरे बांसों का बंगला छवा दो जी
मैं तो बीस बरस की होली
सुहाग मांगण दादी पै गई
हरे हरे बांस छवाय दई राय बटियां
बीबी की दादी रानी जी से अरज करै
सुहाग मांगण गई आं
मेरे दादा के पछवाड़े आले आले बांस खड़े
टीके पै लग रही चांदनी
बीबी हमारी है चांद तारा
बीबी तो म्हारी जैसे चन्दा चकोर
बाबल साहब की बांकी हवेली
हो सून्ने की कुंडली घड़ा तेरे दादा
बनी ए बाबा उमराओ मंगाओ हीरां की चूड़ी
बनी ए थारे बाबा जी से कहियो
ऐसी के जल्दी मचाई हरियाली
ल्हुक बैठ हे राणी रुकमण राणी
लाडो खेलै लौंग के बिरवे तल
लाडो दूर मत खेलण जा हे
बीबी दूर खेलण मत जा
आले गीले चन्दन कटाय मेरे बाबा
छज्जै तो बेठी लाडो कुंवर निरखै
हे दादा कै छजै लाडो तूं क्यूं खड़ी
लाडो ए बागां का जाना छोड़ दो
लाडो पूछै बाबा से ए बाबा
हे फुलड़े तो बीन्हण
अपने बाबा के खड़ी चबूतरे रूप देख वर आये
हुई है सुनहली रात सजन आए हरे हरे
इसी थलियां मैं इसे टीब्यां मैं
बनड़ी! चलो जी हमारे साथ
इस पेड़ नीचै आओ हे रुकमण
आओ री राधे बैठो पिलंग पर
दादा जी नै गोद भरी मेवा सै
घन गजरत आवै सोहाग बिरवा
आंगन बरसै सोहाग बदरी भीतर दुलारी न्हाय
इस सागर के कारने बाबा जी
सदा थिर रहियो जी अविचल रहियो
ओहो चणे वाले रे गलियों में आ के सोर किआ
एरी बनड़ा चलै नां चलणदे
बन्ना जी मैं तो राज घर सै आई
बन्ना काली रे बदरिआ गोरा चन्दा
मेरे नौसे का रूमाल खुसी से रंग दे री
बाबे तेरे की दोय क्यारियां
पांचू तेरे कापड़े कोनै सिमाए ए बना
मेरा री हरियाला बन्ना लाख करोड़ी
सीस तेरे चीरा हरियाले बन्ने पेची अजब बहार
हरियाले बन्ने चीरा तो ले दूं तेरी मौज का
बन्ना तो हांडे अपने बाबा जी की गलियां
पड़ै बुन्दियां भरैं क्यारी समय बरसा लगे प्यारी
हाथों जरी का रूमाल बन्ना री मेरा मेवा ल्याया
नगरी नगरी द्वारे द्वारे
सीस बनै के सेहरा सोए
बनड़े सीस तेरे का सेहरा
तोरो जरा हुक्म मिल जाये सास
दुराणी जिठानी बाबुल बोली हो मारैं
उठ पिया आधी सी रात
कोरो घड़ियों बीरा पीली हल्दी
क्यांहे तै न्योदूं बाबल राजा
धण पिआ मताए मताइआं जी
बीरा थे दाम्मण भल ल्याईओ
झूमर तो पिया! तुम गढ़वाओ
चक्ले मैंराछ घलादो री चकले में
सुण सुण मौसा सुणी’क नां
नीम्ब के लागी निम्बोली दादा हो
पनघट के गीत / हरियाणवी
सिर पै बंटा टोकणी
उठ उठ री नणदल पानी ने चाल
सिर पर दोगढ़ ठा नणद री
कोई सात जणी पाणी जायं री
मेरी बावन गज की बूंद
टोकणी पीतल की रे
मेरी नाजुक नरम कलाई रे
पनियां भरन चली बांकी रसीली
खिल रहा चान्द लटक रहे तारे
रसीले नैन गोरी के रे
मैं तो धुर टांडे तै आया परी
अंबर बरसा बड़ा चिवा मेरी सासड़
मेरा मन ते रपटा पैर फूट गई झारी
मेरे सीस पै घड़ा घड़े पै झारी
चारों सखी चारों ही पनियां को जायें
मुझे पानी को जाने दो
तू पाणी पाणी कर रह्या बटेऊ
हे री सासड़ आजपाणी नै जांगी
हरियाणा के प्रमुख अन्य लोकगीत (Haryanvi Lok Geet)
कातक न्हाण के हरियाणवी गीत
दूध ब्लोंदी अपनी मायड़ बुझी
राम और लिछमन दसरथ जी के बेटे
सत की साथण पाणी नै चाली
उठती सी बरिआं मनै आलकस आवै
आओ राधा नहाण चलां मेरे राम
परस बठंता अपना बाबल बुज्झा
गौतम नार सिला कर डारी
तुलसां माता तैं सुख दाता
बड़ सीजूं बड़ाला सीजूं
पथवरी ए तैं पथ की ए राणी
तैं चौड़ा तैं चीकणा
सांझी माई के हरियाणवी गीत (Haryanvi Lok Geet)
मेरी सांझी के औरे धोरै फूल रही कव्वाई
डूंगी सी डाबर रे कै फूलां की महकार
सांझी सांझा हे कनागत परली पार
म्हारी सांझी ए के ओढैगी के पहरैगी
आरता हे आरता सांझी माई आरता
हे मेरी सांझी तेरी चम्पा फूली
सांझी चाली सांझ नै
जाग सांझी जाग तेरे मात्थे लाग्या भाग
हे खड़िआं थी सिरस तलै
आरता ए आरता संझा माई आरता
नौ नौ नौरते संझा माई के
फागण होली में गाये जाने वाले हरियाणवी लोकगीत (Haryanvi Lok Geet)
उड़े हो गुलाल रोली हो रसिया
ऊंचा रेड़ा काकर हेड़ा विच विच बोदी केसर
ए मेरी पतरी कमर नारो झुब्बादार लाइयो
एकली घेरी बन में आन स्याम
कांटो लागो रे देवरिया
काची अम्बली गदराई सामण मैं
कान्हा बरसाणे में आ जाइयो बुलागी राधा प्यारी
कुरड़ी कूड़ा मां गेरती, कुरड़ी लागी आग
गोदी के अंदर भगत राम राम रह्या टेर
समझा ले अपनो लाल री
होली आई रे फूलां री जोड़ी झरमटी योले
होली बी खेले ढप बी बजा
जब साजन ही परदेस गये मस्ताना फागण क्यूँ आया
ढुंढ़वा दो बंसी मोरी जी
फागण के दिन चार री सजनी
माता यसोदा दही बिलोवे
मेरी नई नई जवानी बिगाड़ी रसिया
यासोदा तेरे लाल ने मेरी दी है मटकिया फोड़
रसियाको नारी बनाओ री
रै चुन्दड़ी तेरा जुलम कसीदा
लिछमन के बाण लगा रै सक्ती लिछमन कै
सावन के हरियाणवी गीत (Haryanvi Lok Geet)
झूलण जांगी ऐ मां मेरी बाग में री
हरे रंगीले बाग़ में, बाजे कृष्ण की बांसरी
मीठी तो कर दे मेरी मां कोथली
मेरे ससुर ने बाग लगाया रे डाली डाली पे अनार
मेरी पींघ तले री लांडा मोर
सात जणी का हे मां मेरी झूलणा जी
तीजां का त्योहार रितु सै सामण की
नांनी नांनी बूंदियां हे सावन का मेरा झूलणा
आई री सासड़ सामणिया री तीज
सामण आया हे मां मेरी मैं सुण्या जी
मोटी मोटी बून्दां झले पै आई
हे री आई सै रंगीली तीज
आया आया री सासड़ सामण
नांनी नांनी बूंदियां मीयां बरसता हे जी
झूलण आली बोल बता के बोलण का टोटा
मुड़ मुड़ डालै झूलती सुनहरी ढोला
हरी ए झंजीरी मनरा न पहरूं
घड़ा ए घड़े पै दोघड़ चन्दो पाणी नै जाये जी
सामण आया हे सखी सामण के दिन चार
आठ बुल्दां का रे हालिड़े नीरणा
मेरे गोरे बदन पै रंग बरसै
बर के गोदे झूलती रे बिटाऊ ढोला सात सहेलिन
रे गगन गरजै झिमालै बिजली
सामण का महीणा मेघा रिमझिम रिमझिम बरसै
तीजां बड़ा त्योहार सखी हे सब बदल रही बाना
झुक जाय बादली बरस क्यूँ ना जाय
हे री सखी सावन मास घिरण लाग्यो
ऊंची कीकर हे मां मेरी पालना री
कड़वी कचरी हे मां मेरी कचकची जी
हरी ये जरी की हे मां चुन्दड़ी जी
सासड़ नै भेजी हे मां मेरी चुंदड़ी जी
सासू तो बीरा चूले की आग
लाल कुसमियां पुगाइयो मेरे बाबल
कच्चे नीम्ब की निम्बोली
मीट्ठी तो कर दे री मोस्सी कोथली
झोलै मैं डिबिआ ले रह्या
आया तीजां का त्योहार
लाट्टू मेरा बाजणा, बजार तोड़ी जाइयो जी
घोलो री नंणद मेंहदी के पात
खेती-बाड़ी के हरियाणवी गीत (Haryanvi Lok Geet)
न्यूं कह रही धौली गाय
ताकतवर बलवान बना
पांच पंचास की नाथ घड़ाई
धरती माता नै हर्या कर्या
बनवारी हो लाल कोन्या थारै सारै
हालिड़े हालिड़े हल घड़वा ले ओरणा
बाजरे की रोटी पोई रे हालिड़ा
कात्यक बदी अमावस आई
ईख नलाई के फल पाई
उड़ जा रे कागा लेजा रे तागा
बोया बोया री मां मेरी बणी
ऊपरां बादलिड़ा ऊपरां क्यूं जा
बोहत सताई ईखड़े तन्नै बोहत सताई रे
अरे न्यूं रोवै बुड्ढा बैल
पड़ते अकाल जुलाहे मरे
एक रोटी को बैल बिका
पड़ा रहा छपपनियां का कालदेवठणी
ग्यास के हरियाणवी गीत (Haryanvi Lok Geet)
हे दे सोई हे साड़’र मास
डाभ कटाओ हे
ओरै धोरै धरी दातनां
हे दे सुत्तीड़ा साढ मास
ओरै धोरै धरे अनार
हाथ से चक्की पिसते हुए हरियाणवी गीत (Haryanvi Lok Geet)
मैं तो माड़ी हो गई राम
चाकी पै धर्या पीसणा चाकी का भार्या पाट
ऊठ बहू मेरी पीस ले
ठंडे से केले के नीचे नींद बड़ी आवे री
चाकी बड़ी दुखदाई बलम मेरे झो के तवाई
तमतै चाले नौकरी म्हारा कौन हवाल
गीले गीले जौ का पीसना री
सासरे के चा में छोरी बालदी बी कोन्या ए
पाणी पिला दे भरतार
हो रबझब की गैल डिगर गया
रहन-सहन के हरियाणवी गीत (Haryanvi Lok Geet)
देसां मैं देस हरियाणा
जाड़ा लागै पाला लागै खीचड़ी निवाई
काला दाम्मन चक्कर काटै
दिल्ली की दलाली
सास री भार्या सा दामण सिमा
उजला भोजन गाए धन
मीठी लागै बाजरे की राबड़ी रै
बाजरा कह मैं बड़ा अलबेल्ला
आध पाव बाजरा कूट्टण बैठी
म्हारो मीठो लागै खीचड़ो
बाजरे की रोटी पोई रै हलिड़ा
सुण कमला गोरी भाण हे बेबे
इब की छोरी न्यूं बतलाई
नाई के रे नाई के ल्याइए कमला नैं
सैनिको के बारे में हरियाणवी गीत (Haryanvi Lok Geet)
क्यों पड़ा है रे धरती म, लिखवा ले नाम भरती में
पिया भरती मैं होले ना
कदी दुनिया में रणधीर डर्या नहीं करदे
बांका रहिए जगत में
भरती हो लो रै बाहर खड़े रंगरूट
जा साजन या तेरी जवानी
भूरे की माता बोलती सुण भूरा मेरा
माना की माता बोलती मेरा माना आइये
जरमन तेरा जाइयो नास
जरमन ने गोला मार्या
कर देस की रकसा चाल
साथ रहनिया संग के साथी
हरियाणा के भक्ति संबंधी लोकगीत (Haryanvi Lok Geet)
राम अर लछमण दशरथ के बेटे
नमो नरंजन मात भवानी
मुझ सेवक की लाज राख
अजी सुन्दर गल में माल मात
नगरकोट में बासा राणी
ऊँचा री कोट सुरंग देवी जालमा
पहल सारदा तोहे मनाऊं
पहले आवै री माता जुलजुली
माता! किन तेरा बाग लगाइयां
मैया राणी! मसाणी सेढ मनाहीं सां
करूं कढ़ाई गुलगुला सेढल माता धोकन जाय
देवी के पर्वत चड़ती चौलण पाट्या ए मां
उठ जाग रै मुसाफिर किस नींद सो रह्या है
तू परेम के रंग मैं रंग दे चोला आण रे बनवारी
या पंचाती धरमसाला क्यूं करदा झूठी मेर रे
कित रम गया जोगी मंढी सूनी
मेरी तेरी कोन्या बणै रे मन ऊत
मन डटदा कोन्या डाटूं सूं रोज भतेरा
दुनिआं मैं रे बाबा नहीं रे गुजारा किसी ढब तै
लोभ मोह उड़ै दोनूं ए कोन्यां धर्म तुलै सै हमेस
बागां मैं दुख सै बगीचां मैं दुख सै
बेबे हे करम्यां की गत न्यारी
दुख देते मात पिता को वे नहीं धरम के लाल जी
गलती मैं जो कुछ बणी सो बणी
बहणो सुणो लगा के कान
गजराई नै टेर लगाई गज घंटा दिया बजाई
मुख तै बोलो रे जै जै सीता राम
भजन हरि का कर प्राणी
हरि भज ले हरि भज ले
ईसवर के गुण गाइये मेरी बहना
हे राजा राणी चले बनबास बड़ तले ला लिया डेरा
दे दे करण तैं दान जाचक खड़े साह्मणै
सात सखिआं के झूमके राधे न्हाण चाली हो राम
हे हर जी ल्याए हैं झोली भर फूल
ए जी जित बांटे झोली भर फूल
मातम के हरियाणवी गीत (Haryanvi Lok Geet)
हाय हाय मेरा खिवैया
अरे मेरे करम के खारे जल गए
चलत पिरान कैसे रोयऊं पिरिया
ब्याही थी रे बिलसी नाहीं
गोरी गोर बियासनी बच्ची मोरनी ए
हाय हाय हे बागां की कोकिल
हाय हाय बागां की कोयल
जब तौं घर तैं लीकड़या गभरू सेर जुआन
विवाह के अवसर के लोकगीत (Haryanvi Lok Geet)
कहो म्हारी लाड्डो कैसा वर ढूंढ़े?
काला मत ढूंढों कुल नै लजावैजी राज,
भूरा मत ढूंढों चलताए पस्सी जै जी महाराज।
लाम्बा मत ढूंढों खड़ाए सांगर तोड़ै जी राज,
छोट्टा मत ढूंढों सब दिन खोट्टा जी महाराज।
इस्सा बर ढूंढों कंवर कन्हया जी राज,
कंवर कन्हैया मथुरा बन के बासी जी राज।
प्रेम भरे हरियाणवी गीत (Haryanvi Lok Geet)
आँखों में आंसू, दिल में दर्द छुपा है।
वक्त के साथ जिन्दगी के रंग बदल गए हैं।
पहले थे सपने हँसते हुए,
अब है यादें रुलाती हुई।
छिपे हुए गमों को दिल से छुपाना है मुश्किल,
अब तो यादें हीं रह गईं हैं ज़िंदगी की बस बची ख़ुशियाँ उसकी।
धूप की तपिश में छाया ढूँढता हूँ,
ज़िन्दगी के फासले में उसका साथ ढूँढता हूँ।
दिल की बातें अनकही रह जाती हैं,
कभी बयाँ कर पाऊँ तो कभी रुक जाती हैं।
कभी हंसते हुए उसके साथ घुटने टेकता हूँ,
कभी उसकी खुशियों का सारा ज़िक्र करता हूँ।
बीते वक्त की यादों में खोया रह जाता हूँ,
उसकी मुस्कान को दिल से सजाया रह जाता हूँ।
उसकी आँखों की चमक और उसके बालों की खुशबू,
यादें बनकर मन को भर जाती हैं। उसके हाथों की सेवा,
उसके हंसने की आवाज़, सब कुछ अब बस यादों में हीं रह गया है।
मुस्कराहट के पीछे छिपी हुई दर्द दिखाई नहीं देती,
उसके चेहरे की ख़ुशियाँ ज़िंदगी की असली ख़ूबसूरती हैं।
प्यार और यादों के मारे, अब तो बस उसके ख़यालों में हीं खो जाता हूँ।
ज़िन्दगी के सफर में मिले हैं यार भी,
पर उसकी यादों की कोई कहानी नहीं।
उसका साथ अब तो सपनों में हीं होता है,
दिल के क़रीब अब तो उसकी तस्वीरें हीं रह गईं हैं यारों।
उसके बिना दिन बीतते हैं, रातें उसकी यादों में गुज़र जाती हैं।
दिल बेकरार है, उसको देखने को बेकरार है,
पर क़दम उसके छोड़ गए,
अब तो बस उसकी यादों में हीं जी रहे हैं।